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Yoga

                               कपालभाती प्राणायाम

 
कपालभाती

 मस्तिष्क के अग्र भाग को कपाल कहते हैं और भाती का अर्थ ज्योति होता है। कपालभाती प्राणायाम को हठयोग के षट्कर्म क्रियाओं के अंतर्गत लिया गया है। ये क्रियाएं हैं

कपालभाती प्राणायाम को हठयोग में शामिल किया गया है। प्राणायामों में यह सबसे कारगर प्राणायाम माना जाता है। यह तेजी से की जाने वाली रेचक प्रक्रिया है। कपालभाती और भस्त्रिका प्राणायाम में अधिक अंतर नहीं है। भस्त्रिका में श्वांस लेना और छोड़ना तेजी से जारी रहता है जबकि कपालभाती में सिर्फ श्वास को छोड़ने पर ही जोर रहता है।कपालभाती खड़े होकर या बैठकर दोनों तरह से किया जा सकता है. इस क्रिया में सांस लेने और छोड़ने की गति जितनी तेज होती है, कपालभाती का लाभ उतना ही अधिक होता है.

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन या वज्रासन पर बैठ जाएं. सांसों को बाहर छोड़ने की क्रिया करें. सांसों को बाहर छोड़ने या फेंकते समय पेट को अंदर की ओर धक्का देना है. ध्यान रखें कि इस बीच श्वास लेना नहीं है क्योंकि उक्त क्रिया में श्वास अपने आप ही अंदर चली जाती है.

ऐसा करने के बाद अंत में सांस सामान्य कर लें यानी गहरी सांस भरें और सांस निकालकर शरीर को ढीला छोड़ दें. इस प्रक्रिया को तीन से पांच बार दोहराएं.


लाभ


कपालभाती से बालों की समस्याएं, चेहरे की झुरियां, आखों के नीचे के डार्क सर्कल और थायराइड की समस्याओं से निजात मिलाता है. यह चर्म रोग में भी फायदेमंद है.

कपालभाती नियमित करने से आखों की बीमारी खत्म होती है और रोशनी बढ़ती है. दातों के लिेए भी यह आसन लाभकारी है. 

कपालभाती प्राणायाम से शरीर की चर्बी कम होती. कब्ज हमेसा के लिये दूर हो जाती हे , एसिडिटी, गैस्टिक जैसी पेट संबंधी बीमारियां ठीक होती हैं. डायबिटीस, कैंसर रोग के लिेए भी लाभकारी है. यह किडनी रोग के लिए भी फायदेमंद है.



सावधानी रहें


कमजोर व्यक्ति को यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए.

कान और आंख की समस्या से ग्रस्त लोगों को यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए.

हाई ब्लडप्रेशर और लो ब्लडप्रेशर के मरीजों के लिए यह वर्जित है.

नाक से रक्तश्राव या कान में दर्द का अनुभव होता हो तो इसे तुरंत बंद कर दें.

इस प्राणायाम को हमेशा खुली और साफ सुथरे स्थान पर करें. 

 




                                                कपालभाती 









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